09 अप्रैल 2010

मुझको मेरी तन्हाईयाँ अक्सर बुलाती हैं


 मुझको मेरी तन्हाईयाँ अक्सर बुलाती हैं,
और फिर मुझे तेरी यादों से नहलाती हैं।
वो जो खुशबु का झोंका गुज़रा मेरे पास से ,
तेरी जुल्फों की कैद से छूटी हवा कहलाती हैं।
आँखें खुली रहती हैं तो दिखता नहीं कुछ भी ,
बंद आँखें ही तो मुझे सबकुछ अब दिखलाती हैं।
चीड़ों की चोटी पर बरसे चन्दन जैसी जो चांदनी,
एक आशिक के चेहरे पर माशूक का नूर कहलाती हैं।
जो भी जख्म मिले हैं मुझको तेरे सजदे में जानम,
तुझको छूकर आती हवा उन जख्मों को सहलाती हैं।
भटक रहा हूँ नील गगन में आवारा बादल सा मैं,
तेरी यादें टकरा कर उनको सावन सा बरसाती हैं।

 मित्र निहार खान के ब्लॉग से ये पंक्तिया आप

एक सवाल..........

एक सवाल बाप ने अपनी बेटी को गिफ्ट देकर बोला ,

भूख लगे तो खा लेना ,

प्यास लगे तो पी लेना   ,

और सर्दी लगे तो जला लेना ,

बताओ क्या था गिफ्ट ,
एक दोस्त ने मुझसे पुछा है , मै तो नहीं बता पाया 
सोचा अपने ब्लोगेर्स मित्रो से ही क्या न पूंछ लू  |
आदरणीय मित्रो जरूर बताये...........