22 अप्रैल 2010

ऐसे जल और घट रही है लकड़ी तो सास लेना भी होगा मुश्किल




हमारी आने वाली पीढि़या भी होली की मस्ती ले सकें, रंगों में सराबोर हो सकें और स्वच्छ वातावरण में होलिका जला सकें, इसके लिए हम सबको ही पहल करनी होगी। वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखना है तो लकड़ी कम जलानी होगी। होलिका सजाने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की आपूर्ति या तो पेड़ काटकर की जाती है या फिर टाल से होती है।
ऐसे घट रही है लकड़ी
बड़े पैमाने पर पौधारोपण होने के बाद भी दस साल में वन आच्छादित या ट्री क्षेत्र में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।
ऐसे बढ़ रहा है प्रदूषण
इन दोनों स्थानों पर ग्रीन बेल्ट नहीं है, जिस कारण यह असर पड़ रहा है। कमोवेश यही स्थिति पूरे शहर की है।
ये पड़ रहा है असर
सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर हवा में मौजूद वे तत्व हैं जो त्वचा से लेकर फेफड़े तक के लिए सबसे घातक हैं। हर माह शहर में टीबी व फेफड़ों के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। देश में हर साल 42 हजार लोगों की मौत इसी बीमारी से हो रही है।
आइए संकल्प लें.
स्वच्छ हवा में अगर हम सास नहीं ले पा रहे हैं तो इसके लिए कोई दूसरा नहीं काफी हद तक हम खुद जिम्मेदार हैं। कभी विकास के नाम पर तो कभी परंपराओं को निभाने के लिए प्रकृति की प्यारी वस्तु पेड़ों को काटते रहे हैं। होली के पर्व पर आइये हम सब मिलकर कम से कम एक पौधा रोपने का संकल्प लें और प्रण करें कि होली पर वृक्षों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। धरती हरी भरी रहेगी तभी तो हमें स्वच्छ हवा मिलेगी।