17 जुलाई 2012

बेमिसाल इरफ़ान -पान सिंह तोमर--संजय भास्कर



           

बहुत दिनों से पान सिंह तोमर फिल्म देखने की सोच रहा था बहुत चर्चा जो सुनी थी आखिर कल समय मिल ही गया सेट मेक्स पर कल बड़े ध्यान से फिल्म देखी जो बहुत पसंद आई और रात को ९ बजे दोबारा देखी 'पान सिंह तोमर' फिल्म में गाने नहीं हैं  !
एक ऐसे नौजवान की कहानी, जो गरीबी के कारण फौज में भर्ती होता है, भूख मिटाने के लिए रेस ट्रैक पर दौड़ता है, देश के लिए मेडल जीतता है, लेकिन एक दिन बंदूक उठाकर डाकू बन जाता है..... दरअसल यह एक सच्ची घटना है,

दोनों फिल्में किसी न किसी रूप में आपको लड़ते रहना सिखाती हैं, जैसा कि पान सिंह तोमर कहते हैं, रेस में एक असूल होता है जो एक बार आपने रेस शुरू कर दी तो उसको पूरा करना पड़ता है, फिर चाहे आप हारें या जीतें..... आप सरेंडर नहीं कर सकते... खैर आज बातें सिर्फ पान सिंह तोमर की करूंगा...
               फिल्म में पान सिंह का किरदार बहुत ही स्ट्रोंग बनकर उभरता है, उनका अभिनय, संवाद अदायगी पूरी तरह से आपको बांधे रखते हैं... फिल्म के शुरुआत में ही पान सिंह कहता है कि ''बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में ''  फिल्म में सभी किरदार अपनी अपनी जगह पक्की करते हैं, फिल्म कभी भी बोर नहीं करती... बीच बीच में हलके फुल्के हास्य संवाद आपको थोडा मुस्कुराते रहने का मौका देते हैं... 
             अगर फिल्म के कथानक पर आयें तो पान सिंह हर उस इंसान के अन्दर की आवाज़ है जो सिस्टम से परेशान है, जो देश की आर्मी में इतने साल रहने के बाद में सरकार के खिलाफ ही बन्दूक उठाकर बागी बन जाता है... फिल्म में पान सिंह का वो डायलोग कि सरकार तो चोर है.... देश में आर्मी को छोड़कर सब चोर हैं..... आज के हालात पर करारा तमाचा  है.. अपनी कड़क ठेठ बोली में भी पान सिंह हर बार दुखी नज़र आता है, उसके मन की वो टीस बरबस ही उसके चेहरे पर दिख जाती है कि जब उसने देश के लिए इतने मेडल लाये तब उसे किसी ने नहीं पूछा, और जब उसने बन्दूक उठा ली तो पूरा देश उसके बारे में बात कर रहा है... फिल्म पान सिंह और उस जैसे बागियों के बदले की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है !
                फिल्म जब ख़त्म होती है तब तक मन भारी हो चुका होता है, ये फिल्म आपको ये सोचने पर ज़रूर मजबूर करेगी कि आखिर पान सिंह कब तक बनते रहेंगे... ऐसे लोग कहीं बाहर से नहीं आते, ये तो हर गैरतमंद इंसान के अन्दर रहते हैं... पान सिंह आज भी जिंदा है हमारे अन्दर, जब भी किसी के धैर्य का बाँध टूटता है वो खुल कर सामने आता है... फिल्म के अंत में तिग्मांशु देश के उन भुला दिए गए खिलाडियों को याद करना नहीं भूलते जो सरकार की अनदेखी का शिकार हो गए........ कितने पैसे के अभाव में मर गए और कितनो को अपना गोल्ड मेडल तक बेचना पड़ा........!
            
             अगर आप में से किसी ने अभी तक ये फिल्म नहीं देखी तो जरूर देखें और देखने के बाद ज़रूर बताईयेगा कि कैसी लगी .......!


@ संजय भास्कर 

57 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

हमें तो पता ही नहीं लगा कि सेट मैक्स पर आ रही है.....
बहुत मन है देखने का...आपकी समीक्षा पढकर और उत्सुकता बढ़ गयी.
आभार.

अनु

Bharat Bhushan ने कहा…

फिल्म तो नहीं देख पाए लेकिन कहानी पर प्रकाश डालने के लिए आपका आभार.

Satish Saxena ने कहा…

आपसे सहमत हूँ , पानसिंह तोमर की भूमिका प्रभावशाली थी !

राहुल ने कहा…

बहुत सुन्दर संजयजी....आपकी समीक्षा पढ़कर मुझे भी फिल्म देखने की इच्छा हो रही है.. खूब नाम सुना है इस फिल्म का.....

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

ऐसी लड़ाई झगड़े की फिल्‍म देखने का मन ही नहीं करता। किसी भी अत्‍याचार या हताशा से डाकू बन जाना समस्‍या का हल नहीं है। यदि यही हल है तो महिलाएं तो सारी ही डाकू बन जाएंगी।

Arun sathi ने कहा…

bahut satik...sahi me paan singh tomar me irfan me bariya rol kiya he..

स्वाति ने कहा…

bahut sundar....

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

पानसिंह तोमर की भूमिका प्रभावशाली थी !बहुत सुन्दर संजय!!

शिवनाथ कुमार ने कहा…

मैंने फिल्म देखी है
काफी अच्छी है ...
सुंदर समीक्षा ...
सही कहा आपने
पान सिंह हर उस इंसान के अन्दर की आवाज़ है जो सिस्टम से परेशान है....

deepakkibaten ने कहा…

badhiya hai, vaise aapne film dekhne kafi der kar di.

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

sanjay jee ab to lagta hai film dekhnee hee padegee..is beech kafi achhi films release hui hain..sadar badhayee ke sath

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी समीक्षा की है आपने ... मुझे भी इस बार अवसर मिल ही गया इसे देखने का ...
कल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''

डॉ टी एस दराल ने कहा…

देखने के बाद ही बता रहे हैं --- अच्छी है, पर पता नहीं, कितनी सच्ची है .
सही कहा , अंत अच्छा नहीं लगा .

Maheshwari kaneri ने कहा…

मुझे पता है संजय पानसिंह तोमर एक बहुत ही अच्छी फिल्म है..लेकिन अफसोस नही हाल में देख पाए न ही सेट मैक्स पर देख पाए ..पर जरुर देखने की तम्मना है..याद दिलाने केलिए आभार..

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आपकी समीक्षा पढकर और उत्सुकता बढ़ गयी....:))

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हमने तो देख ली ये फिल्म और कमाल की लगी ... बहुत दिनों बाद हिंदी सिनेमा में बनती हैं ऐसी फ़िल्में ..

kshama ने कहा…

Ye film dekhne kee badee ichha hai....bahut badhiya likha hai!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बढिया समीक्षा ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

इस फिल्म की तारीफ़ सुनकर पहले ही सीडी से देख
चुका हूँ,,,,वाकई ये फिल्म देखने लायक,,,,,

लाजबाब समीक्षा,,,,,बधाई,,,

RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

virendra sharma ने कहा…

बढिया समीक्षा की है आपने .फिल्म हमने देखि है .पान सिंह आखिर तक सकारात्मक ,पोजिटिव रहतें हैं डाकू उनका सिर्फ लिबास है मन नहीं मन आखिर तक राष्ट्र प्रेम से ही संसिक्त रहता है .

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छी प्रसतुति ..
इस फिल्‍म के बारे में पढी तो बहुत ..

देखने का मौका अबतक नहीं मिल सका है ..

समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

देखी है फिल्म, बहुत ही अच्छा अभिनय किया है...

Sadhana Vaid ने कहा…

बड़ी सशक्त समीक्षा की है संजय जी आपने फिल्म की ! बड़ी इच्छा थी यह फिल्म देखने की आपकी समीक्षा ने इसे और बढ़ा दिया है !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने कहा है तो अगली बार आयेगी तब जरूर देखेंगे, इस खूबसूरत समीक्षा के लिये आभार.

रामराम

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

अब तो जरुर देखेंगे
:-)

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बढिया समीक्षा की है आपने .

Suresh kumar ने कहा…

संजय भाई वैसे तो मैं फिल्मे कम ही देखता हूँ ,क्योंकि सारा परिवार एक साथ बैठकर फिल्म देख सके, ऐसी फिल्मे बहुत ही कम बनती हैं !पान सिंह तोमर फिल्म की आपने इतनी अच्छी समीक्षा की है तो जब भी वक्त लगेगा जरुर देखूंगा !

राज चौहान ने कहा…

पानसिंह तोमर की भूमिका प्रभावशाली थी !

राज चौहान ने कहा…

बढिया समीक्षा की है आपने संजय जी

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग

विचार बोध
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

pictur to nahi dekhi hai ...ab awashay dekhungi ...waise ..pecture ya kahani adhiktar sacchi ghatnaon kahi pratibibm hoti hai...thore se kalpna ke sath....

virendra sharma ने कहा…

पान सिंह तोमर उस ज़ज्बे का नाम है जो कभी हार नहीं मानता ,आदर्श रूप बनाए रहता है आखिर तक .फौज को उसने कहैं भी नहीं लजाया है ,जो पाया है उस पर गौरवान्वित है इसीलिए अपने बेटे को जो फौज में भर्ती ले चुका है क्रूर सम्बन्धी की हत्या करने से रोकता है .

ASHOK BIRLA ने कहा…

jab res suru ko jati hai to fir aap aage ho aakhir me res finishing line ko touch karno hot hai .....!!!

Saumya ने कहा…

movie acchi hai..maine dekhi hai.. apka review bhi pasand aaya!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया समीक्षा ... यह पिछले रविवार को भी सोनी चैनल पर आ चुकी है

Kailash Sharma ने कहा…

एक बेहतरीन पिक्चर...सुन्दर समीक्षा..

amit kumar srivastava ने कहा…

solid movie.

रचना दीक्षित ने कहा…

यही तो विडम्बना है हमारे समाज की. बेहतरीन चलचित्र की उम्दा समीक्षा. आजकल ब्लॉग पर सक्रियता बहुत कम होती जा रही है. सब ठीक है...

prritiy----sneh ने कहा…

achha viviran diya, dekhne ka kotuhul jaag gaya. aise hi likhte rahiye
shubhkamnayen

निर्मला कपिला ने कहा…

ाच्छी समीक्षा । देखें कहाँ हमारे शहर मे सिनेमाघर ही नही है। शुभकामनायें।

Arshia Ali ने कहा…

सही कहा आपने। लाजवाब मूवी है।

............
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Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

पान सिंह आज भी जिंदा है हमारे अन्दर, जब भी किसी के धैर्य का बाँध टूटता है वो खुल कर सामने आता है...
संजय भाई अच्छी समीक्षा ..अभी हमने भी देखा मन में आक्रोश भर जाता है जोर जबरदस्ती कब्ज़ा , पुलिसिया कमीनापन , दगाबाजी ..चम्बल की दुनिया ऐसे ही नहीं बनी न !
भ्रमर ५

mark rai ने कहा…

''बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में '' .... सुन्दर समीक्षा.

sourabh sharma ने कहा…

कहानी फिल्म देखते हुए किसी के मुँह से सुन लिया कि अच्छा हुआ यार ये पान सिंह जैसी ट्रैजडी नहीं है तो सोचा कि अच्छा हुआ पान सिंह नहीं देखी लेकिन आपकी टिप्पणी पढ़कर लगा कि अपने आप के साथ ही ट्रैजेडी कर ली इतनी भावपूर्ण फिल्म न देखकर

बेईमान शायर ने कहा…

Atyant hi prabhawshaali film hai. paatron ka abhinay utna hi jaandaar!

बेनामी ने कहा…

bahut hi badhia samiksha ki aapane sanjay ji
ye film maine kaafi pahale dekh li thi aur bahut hi shandar film hain
irfan khan ka kaam to jabardast hain aur vo dialogue
" chamabal mein to baagi rahte hain, daaku to parliament mein rahte hain"

Asha Lata Saxena ने कहा…

पिक्चर तो नहीं देखी पर जानकारी बहुत सटीक |बधाई
आशा

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

जन-सरोकारों से जुड़ी फिल्में प्रभावित करती ही हैं।
पान सिंह तोमर ऐसी ही फिल्म है।
अच्छी समीक्षा के लिए आभार।

sm ने कहा…

nice review
havent seen the movie

kanu..... ने कहा…

acchi film hai 2 baar dekh chuki hu.movie haal me bhi tv par bhi

मंजुला ने कहा…

आपसे सहमत हूँ ,वाकई मे फिल्म के अंत मे मन भारी हो गया था !

राज चौहान ने कहा…

...वाकई ये फिल्म देखने लायक

लाजबाब समीक्षा

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

फिल्म की सुंदर समीक्षा,,,बधाई,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,

Anjani Kumar ने कहा…

इरफान का अभिनय बेमिसाल था.... और आपने उतने ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है

Asha Joglekar ने कहा…

मैने देखी है और दुबारा फिर देखी । ऐसी फिल्में कम ही आती हैं जो हकीकत बयाँ करती हैं । आपकी समीक्षा भी अच्छी लगी ।

बेनामी ने कहा…

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग
है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर
हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..

हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
Here is my web site ... फिल्म

Akash Mishra ने कहा…

आपने समीक्षा बहुत अच्छी लिखी है , बस पान सिंह तोमर के जो संवाद लिखे हैं उनको अगर ठीक उसी भाषा(बुन्देलखंडी) में लिखा गया होता जैसे फिल्म में बोले गए हैं तो बात और अच्छी बनती(क्षमा) |
"रेस को एक असूल होत है कि एक बार जो आपने रेस सुरु कर दयी तो बाये पूरो करनए परत है , फिर चाहे आप हारौ या जीतौ , आप सरेंडर नईं कर सकते |"
बहुत ही अच्छी फिल्म , बहुत ही अच्छा निर्देशक और बहुत उम्दा कलाकार |

सादर