04 अक्तूबर 2013

......... क्योंकि हम भी डरते है :))


  ( चित्र - गूगल से साभार )

उस चौराहे पर
पड़ी वह स्त्री रो रही
है बुरी तरह से
उसका बलात्कार हुआ है
कुछ देर पहले
वह सह रही है असहनीय
पीड़ा कुछ
दरिंदो की दरिंदगी का
भीड़ में खड़े है
लाखो लोग पर मदद का हाथ
कोई नहीं बढाता
इंसानियत नहीं बची
......ज़माने में
क्योंकि हम भी डरते है.........!!!


--  संजय भास्कर 


38 टिप्‍पणियां:

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

दुखद है समाज की यह स्थिति.

kunwarji's ने कहा…

अन्दर अन्दर ही सब डरे हुए है!
हमारे संस्कार हमारी शिक्षा से कोसो दूर हो गए इसी लिए हम यूँ घुट घुट कर जीने और खुल कर मरने को मजबूर हो गए...

कुँवर जी,

Dr ajay yadav ने कहा…

दर्द और दुःख से भरी मार्मिक रचना |

रविकर ने कहा…


प्रभावी-
आभार आदरणीय-

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर प्रभावी प्रस्तुति.!

RECENT POST : पाँच दोहे,

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

हृदयस्पर्शी........
मन को उद्वेलित करती रचना......

अनु

राज चौहान ने कहा…

सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !

राज चौहान ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।

Ramakant Singh ने कहा…

आपने सच कहा हम भी डरते है की भीड़ में आजकल मैं भी खड़ा हूँ

HARSHVARDHAN ने कहा…

भावनात्मक रचना।। ऐसी स्थिति के हम कहीं न कहीं जिम्मेदार ज़रूर है !!

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कौशल लाल ने कहा…

दुखद स्थिति.........मार्मिक रचना

अरुन अनन्त ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अरुन अनन्त ने कहा…

आदरणीय संजय भाई इसे हम अपने भीतर विद्यमान डर कहें या अपने ही कर्तव्यों से दूर भागना कहें. भाई जी समस्या तो यही है कि अजीब सी मानसिकता ही धीरे धीरे समाज को खोखला कर चुकी है. एक अच्छा कार्य करने से पहले सौ बार सोचते हैं और एक गलत कार्य करने से पहले शायद एक बार भी नहीं सोचते, सोचते केवल इतना हैं कि चलो देखा जायेगा. भाई बहुत ही मार्मिक रचना प्रस्तुत की है आपने

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

ह्रदय को कचोटती बहुत ही मार्मिक रचना..

Asha Lata Saxena ने कहा…

इसे दर कहें या खुद की कायरता |रचना अच्छी लगी |

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना ,किन्तु अब ये डर निकलना चाहिए हम भी डरते हैं की जगह हम भी डरते थे हो न चाहिए ,आज इसके साथ तो कल अपना भी नंबर आ सकता है इसलिए इस डर को निकलना होगा आगे हिम्मत कर दूसरों के दुःख में हाथ बटाना होगा.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kyonki ham bhi darte hain :(

shalini rastogi ने कहा…

पर यह मानसिकता बहुत दुखद है....

Ankur Jain ने कहा…

इन घटनाओं की वजह से ही कई बार एक कुंठा पैदा होती है कि क्या हम वाकई में इंसानों के बीच रह रहे हैं...उत्तम प्रस्तुति।।

Unknown ने कहा…

आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 04.10.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

Parul Chandra ने कहा…

ये डर बहुत बुरा है.. खोखला कर रहा है हमारे संस्कारों को।

Shashiprakash Saini ने कहा…

तमाशा कब तुम्हारा हो जाए
आग घर लग जाए
दिन ढलने में
दुश्वार हो जाए
कल की सोचो
आवाज उठाओ रोको
अपनी ख़ामोशी
उसकी जुर्रत न बनो
तमाशबीन हम गिद्ध से बदत्तर
आवाज उठाओ रोको
कल की सोचो
गिद्ध न बनो

virendra sharma ने कहा…

हम भीड़ नहीं तमाशाई हैं -

हम मूक समर्थन करते हैं -

पर कुछ सरे आम करने से डरते हैं।

बढ़िया भाव विरेचक रचना।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

विचारणीय अभिव्यक्ति

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

दु:खद यथार्थ............

राजीव कुमार झा ने कहा…


हृदयस्पर्शी........
नई पोस्ट : नई अंतर्दृष्टि : मंजूषा कला

Rewa Tibrewal ने कहा…

sahi kaha apne....
par aisa dar kis kam ka...jo insan say insaniyat chin le....dukhad

Unknown ने कहा…

दर्द और दुःख से भरी मार्मिक रचना, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।

विभूति" ने कहा…

marmik rachna....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अंदर से सब डरे हुए हैं ... पर ये समस्या का हल तो नहीं है ... इन दरिंदों के सामने खड़ा होना पड़ेगा ... नहीं तो इतिहास माफ नहीं करेगा ...

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सच है हम सब डरे हुए हैं और इसी डर का फायदा दरिन्दे उठाते हैं.

कविता रावत ने कहा…

कौन झंझट में पड़े यही सोच सब बढ़ लेते हैं आगे ..जिसके अपनों पर गुजरती हैं वही जानता इस दर्द को ...
बहुत बढ़िया जन जागृत करती रचना

Asha Joglekar ने कहा…

हमारी पुलिस हमारी रक्षक नही भक्षक है इसीसे डरते हैं सब कि कहीं हमें ही न पंसा दे कोर्ट कचहरी के चक्कर में।

सच्ची प्रस्तुति।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दुखद सत्य व्यक्त करते शब्द।

Arun sathi ने कहा…

बेहतरीन

prritiy----sneh ने कहा…

samayik, satik rachna.

dar hi kai baar hame annyay ka virodh karne se rokti hai, is dar par vijay pana hoga.

shubhkamnayen

Unknown ने कहा…

ड़रता कोई नहीं बस इंसानियत मर गई हैं

Unknown ने कहा…

सच है हम सब डरे हुए हैं